राज्य की सहमति के बगैर नागरिकता नहीं मिलेगी

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नई दिल्ली। नीलू सिंह
केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मंगलवार को कहा कि नागरिकता (संशोधन) विधेयक पारित हो जाने के बाद संबद्ध राज्य सरकारों की सहमति के बगैर किसी विदेशी को भारतीय नागरिकता नहीं दी जाएगी।
मंत्रालय के प्रवक्ता अशोक प्रसाद ने कहा कि भारतीय नागरिकता के लिए हर आवेदन की जांच संबद्ध उपायुक्त (डीसी) या जिलाधिकारी (डीएम) करेंगे और अपनी रिपोर्ट संबद्ध राज्य सरकार को सौंपेंगे। प्रसाद ने कहा कि राज्य सरकार को अपनी एजेंसियों से भी छानबीन करानी होगी। तभी जाकर किसी व्यक्ति को भारतीय नागरिकता दी जाएगी।
उल्लेखनीय है कि नागरिकता अधिनियम, 2019 का पूर्वोत्तर में कई संगठनों और काफी संख्या में लोगों ने सख्त विरोध किया है। दरअसल, यह अधिनियम 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आए बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध और ईसाई अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान करता है। बशर्ते कि वे कम से कम सात साल से भारत में रह रहे हों। फिलहाल यह समय सीमा 12 साल है। पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के छह धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए इससे पहले दीर्घकालीन वीजा (एलटीवी) का एक विशेष प्रावधान किया गया था। इस अधिनियम के तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्मों के लोगों को यह साबित करना होगा कि वे इन तीनों देशों में से किसी एक के रहने वाले हैं।

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