असंवैधानिक है चुनावी बांड योजना : सुप्रीम कोर्ट

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नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने ‘चुनावी बॉन्ड योजना’ को असंवैधानिक करार देते हुए इसे रद्द कर दिया। सुप्रीम कोर्ट के 5 जजों की संविधान पीठ ने इस ऐतिहासिक फैसले में कहा कि चुनावी बॉन्ड योजना, संविधान के अनुच्छेद 19(1)ए के तहत ‘भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ-साथ सूचना के अधिकार’ जैसे संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करती है। राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए केंद्र सरकार द्वारा यह योजना 6 साल पहले शुरू की गई थी। मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, बीआर गवई, जे.बी. पारदीवाला और मनोज मिश्रा की संविधान पीठ ने भारतीय स्टेट बैंक को तत्काल प्रभाव से चुनावी बॉन्ड जारी करने से रोक दिया है। पीठ ने सर्वसम्मति से पारित फैसले में केंद्र सरकार की उन दलीलों को सिरे से ठुकरा दिया है, जिसमें कहा गया कि मतदाताओं को राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे की जानकारी पाने का कोई अधिकार नहीं है। संविधान पीठ ने कहा कि निजता के मौलिक अधिकार में नागरिकों की राजनीतिक निजता और संबद्धता का अधिकार भी शामिल है। संविधान पीठ ने इसके साथ ही इस योजना के साथ-साथ आयकर अधिनियम और जन प्रतिनिधित्व अधिनियम में किए गए संशधनों को रद्द कर दिया। इन संशोधनों के जरिए राजनीतिक दलों को चुनावी बॉन्ड के जरिए दिए जाने वाले चंदे को गुमनाम कर दिया गया था। मुख्य न्यायाधीश चंद्रचूड़ ने खुद के अलावा, न्यायमूर्ति गवई, जे.बी. पारदीवाला और मनोज मिश्रा के लिए फैसले लिखे, जबकि जस्टिस संजीव खन्ना ने अलग से अपना फैसला दिया। लेकिन दोनों फैसलों का एक ही निष्कर्ष है। मुख्य न्यायाधीश ने फैसला सुनाते हुए कहा कि ‘चुनावी बॉन्ड योजना के तहत राजनीतिक दलों को स्वैच्छिक चंदे की जानकारी का खुलासा नहीं करना या गुमनाम रखना सूचना के अधिकार का उल्लंघन है। दूसरा, क्या धारा 182(1) में संशोधन द्वारा राजनीतिक दलों को असीमित कॉर्पोरेट फंडिंग की परिकल्पना की गई है। कंपनी अधिनियम स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है। मुख्य न्यायाधीश कहा कि ‘मतदान के विकल्प को प्रभावी बनाने के लिए राजनीतिक दलों को मिलने वाले चंदे की जानकारी लोगों के लिए जरूरी है। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि प्राथमिक स्तर पर, चुनावी बॉन्ड योजना राजनीतिक दलों को चंदा देने वालों को एक मंच प्रदान करता है यानी विधायिका तक पहुंच बढ़ाता है। यह पहुंच नीति निर्धारण पर प्रभाव डालने में भी सहायक होती है। उन्होंने कहा कि इस बात की भी प्रबल संभावना है कि किसी राजनीतिक दल को वित्तीय योगदान देने से धन और राजनीति के बीच घनिष्ठ संबंध के कारण बदले की व्यवस्था हो जाएगी। लिहाजा चुनावी बॉन्ड योजना और इसके विवादित प्रावधान, इसके जरिए चंदा देने वाले को गुमनाम करके मतदाता के सूचना के अधिकार से वंचित करता है।

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