नई दिल्ली, देव कुमार। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि अगर समय रहते पर्यावरण संरक्षण की दिशा में कदम नहीं उठाया तो तो भारी परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। हाल ही में एक रिपोर्ट सामने आई है, जिसमें बताया गया है कि इस साल मई में ग्रीनलैंड की बर्फ की चादर औसत से 17 गुना अधिक तेजी से पिघल गई है। यह स्थिति न सिर्फ ग्रीनलैंड के लिए, बल्कि आइसलैंड के लिए भी खतरे की घंटी है। वैज्ञानिकों के अनुसार, यह असामान्य पिघलाव आर्कटिक क्षेत्र में हो रहे तेजी से जलवायु परिवर्तन का परिणाम है। वैज्ञानिक नेटवर्क वर्ल्ड वेदर एट्रिब्यूशन (डब्ल्यूडब्ल्यूए) के अनुसार, गर्मी की लहर के दौरान ग्रीनलैंड के बर्फीले क्षेत्र ने न सिर्फ अपने सामान्य पिघलाव के रिकॉर्ड को तोड़ा, बल्कि इसने आइसलैंड को भी प्रभावित किया। डब्ल्यूडब्ल्यूए की रिपोर्ट में बताया गया है कि मई में ग्रीनलैंड की बर्फ औसत से 17 गुना तेजी से पिघली। इस घटनाक्रम ने समुद्र के जलस्तर में अप्रत्याशित वृद्धि की संभावना को जन्म दिया। इंपीरियल कॉलेज लंदन के जलवायु विज्ञान के प्रोफेसर फ्राइडेरिक ओटो के अनुसार, यह पिघलाव जलवायु परिवर्तन का सीधा प्रभाव है, जो इस गर्मी की लहर के बिना संभव नहीं था। मई में आइसलैंड का तापमान 26 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया, जो अब तक के किसी भी मई के महीने का रिकॉर्ड था। यह तापमान पिछले 30 वर्षों के औसत से 13 डिग्री अधिक था। यह रिकॉर्ड तोड़ गर्मी, द्वीप के पारंपरिक जलवायु को अस्त-व्यस्त करने के साथ ही स्थानीय जीवन के लिए भी खतरा उत्पन्न कर रही है।
यह क्यों खतरनाक है?
– ग्रीनलैंड में पिघलती बर्फ और बढ़ता तापमान समुद्र स्तर को प्रभावित कर सकते हैं
– यह वैश्विक स्तर पर बाढ़ और अन्य प्राकृतिक आपदाओं का कारण बन सकते हैं
– ग्रीनलैंड और आइसलैंड में मई के दौरान जो तापमान रिकॉर्ड हुआ, वह हर 100 साल में एक बार हो सकता है
– इससे दोनों देशों के पारंपरिक जीवनशैली और बुनियादी ढांचे पर गहरा असर पड़ेगा
आर्कटिक क्षेत्र क्यों संवेदनशील
– 2022 की एक स्टडी के अनुसार, आर्कटिक क्षेत्र ग्लोबल वार्मिंग के कारण सबसे पहले प्रभावित होगा
– 1979 के बाद से ग्रह के बाकी हिस्सों की तुलना में चार गुना तेजी से गर्म हो रहा है
