सहिष्णु दुनिया देखना चाहते थे गांधी-मंडेला

अंतरराष्ट्रीय

नई दिल्ली| नीलू सिंह
दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामाफोसा ने शुक्रवार को कहा कि महात्मा गांधी और रंगभेद विरोधी क्रांतिकारी नेल्सन मंडेला एक सहिष्णु दुनिया देखना चाहते थे। वे ऐसी दुनिया चाहते थे जिसमें भेदभाव न हो।
पहले इब्सा (भारत, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका) गांधी-मंडेला स्मृति स्वतंत्रता व्याख्यान में रामाफोसा ने गांधी के कथन को दोहराया, खुद वह बदलाव बनो जो दुनिया में देखना चाहते हो। उन्होंने कहा, लेकिन वह बदलाव क्या था जिसे गांधी और मंडेला देखना चाहते थे। वे गरीबी दूर करना चाहते थे और एक ऐसी दुनिया चाहते थे जहां देश एक-दूसरे का सम्मान करें, जहां बहुपक्षवाद का सम्मान हो तथा एक-दूसरे के धर्म, जाति, नस्ल और क्षेत्रीय संबद्धता के प्रति सहिष्णुता हो।
कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी मौजूद थे। रामाफोसा ने कहा कि दक्षिण अफ्रीका भारत के साथ अपने संबंधों के निर्माण को लेकर आशान्वित है। उन्होंने कहा, हम ऐसे देश हैं जिसे महासागर एक-दूसरे से अलग करते हैं, लेकिन अपने-अपने देश के लोगों की सामूहिक ऊर्जा से हम जुड़े हुए हैं। गांधी और मंडेला की विरासत उस समय उतनी महत्वपूर्ण नहीं थी जितनी वह आज है। वैश्विक अर्थव्यवस्था के समाधान में हमलोगों की सामूहिक भूमिका है, जो इस वक्त कई चुनौतियों का सामना कर रहा है।
रामाफोसा ने पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू को भी याद किया। उन्होंने अहमद कठराडा, इस्माइल मोहम्मद, महात्मा गांधी की पौत्री इला गांधी जैसे भारतीयों का भी जिक्र किया जो दक्षिण अफ्रीकी लोकतंत्र में अहम शख्सियतें बने।

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