रामलला की पहली झांकी का दर्शन कर झूम उठे श्रद्धालु

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अयोध्या। रामलला की पहली झांकी का दर्शन कर श्रद्धालु अभिभूत हो गये। मध्य रात्रि रामलला की पहली तस्वीर साझा की गई थी। आस्था का आलम यह रहा है कि भगवान के विग्रह पर जिनकी भी नजर पड़ी वह श्रीराम नाम का जप करने लगा। वहीं शुक्रवार को अनुष्ठान के अवसर पर विराजमान रामलला लगभग चार वर्ष के बाद अपने मूल निवास स्थल पर पहुंच गए।


श्रीरामजन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र की ओर से रामलला की विराजित होने वाले विग्रह की प्रभावली में भगवान विष्णु के दशावतार का दर्शन कराया गया है। इस विग्रह के प्रभावली के शीर्ष पर सूर्यदेव है जबकि दाहिने अंग में मत्स्य, कूर्म, वराह, नृसिंह, वामनावतार उत्कीर्ण हैं जबकि वाम अंग में परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध व कल्किवतार को उत्कीर्ण किया गया है। इसी तरह से भगवान के चरण के ऊपर दोनों तरफ क्रमशः हनुमान जी व गरुण देव हैं। विग्रह के पैरों के नीचे कमल दल है। मिली जानकारी के अनुसार विग्रह का वजन करीब दो सौ किलो है। इसके अलावा विग्रह की लंबाई चार फिट 24 इंच है और चौड़ाई ती फीट है। श्रीरामजन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र के पदाधिकारी पहले दिन से इस बात को आग्रही थे कि रामलला का वही स्वरूप रहे, जो शास्त्र में वर्णित है, जिसमें कहा गया ‘श्यामल कोमलांगम..’।

इसके चलते सबसे नेपाल के गंडकी नदी से शिला की खोज की गयी। यहां पाए जाने वाले शालिग्राम शिला को बिना प्रतिष्ठा पूज्य माना गया है। यह शिला बड़े धूमधाम से लाई भी गयी लेकिन नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ राक मेकेनिक्स की टीम के परीक्षण में शिला के आंतरिक हिस्से में दरार दिखाई देने के कारण दक्षिण भारत के प्रांतों विशेष रूप से कर्नाटक में शिला की खोज कराई गयी। इस बीच जयपुर राजस्थान से संगमरमर की शिलाएं भी यहां पहुंच गयी। हालांकि चित्रकार वासुदेव कामत ने मार्बल से निर्मित गर्भगृह में संगमरमर शिला से विग्रह स्थापित करने औचित्य पर ही सवाल खड़ा कर दिया था। फिर भी जयपुर के मूर्तिकार दावा करते रहे कि उनकी ओर से जिस खदान से शिला निकली गयी है, उसमें हल्का ग्रे शेड रहेगा। बताया जा रहा है कि उत्सव विग्रह के रूप में रामलला का साथ निभाने के लिए रजत विग्रह का भी पदार्पण होगा। इनका गर्भगृह में पदार्पण शैय्याधिवास के समय 21 जनवरी को होगा। उधर अचल विग्रह के साथ -साथ रजत विग्रह का भी अधिवास चल रहा है। यहां चल रहे प्राण प्रतिष्ठा अनुष्ठान के चौथे दिन प्रातः नौ बजे अरणि मंथन से यज्ञ कुंड में अग्नि देव का प्राकट्य हो गया। वैदिक मंत्रों से अग्नि देव के आह्वान के उपरांत यज्ञकुंड में उनकी प्रतिष्ठा की गयी। इसके अनंतर द्वारपालों द्वारा सभी शाखाओं का वेदपारायण, देवप्रबोधन, औषधाधिवास, केसराधिवास, घृताधिवास, कुण्डपूजन, पंच भूसंस्कार किया गया। इसी कड़ी में नवग्रह स्थापन, असंख्यात रुद्रपीठ स्थापन, प्रधान देवता स्थापन, राजाराम – भद्र – श्रीरामयन्त्र – पीठ देवता – अङ्ग देवता – आवरण देवता की भी महापूजा की गयी। इसी तरह से वारुण मण्डल, योगिनी मण्डल स्थापन, क्षेत्रपाल मण्डल स्थापन, ग्रह होम, स्थाप्य देवहोम, प्रासाद वास्तु शांति व धान्याधिवास के साथ सायंकालिक पूजन एवं आरती हुई। अनुष्ठान के लिए काशी से आए विद्वान आचार्य गजानन जोधकर बताते हैं कि मानव जीवन के लिए उपयोगी पदार्थों में भगवान का अधिवास कराया जाता है। पंच महाभूतों की ऊर्जा इन पदार्थों में समाहित है। इससे विग्रह में शक्तियों का आधान होता है और विग्रह ऊर्जा से परिपूर्ण व विशिष्ट आभा से युक्त हो जाती है। व्यवहार की दृष्टि से कहें तो विग्रह में किसी प्रकार की त्रुटि हो तो उसका भी परीक्षण हो जाता है। उधर अनुष्ठान में प्रमुख यजमान डा अनिल मिश्र व उनकी पत्नी उषा मिश्रा के अलावा अन्य यजमान भी शामिल रहे। श्रीरामजन्म भूमि तीर्थ क्षेत्र ने सभी यजमानों के नामों की अधिकृत घोषणा नहीं की है।

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