
हल्द्वानी, गौरव जोशी। महिला महाविद्यालय हल्द्वानी की नमामि गंगे इकाई ने नगर के जगदम्बा माता मंदिर परिसर में जागरूकता शिविर का आयोजन किया । इसके तहत गुरुवार को भारतीय ज्ञान परंपरा से संबंधित आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और नैतिक मूल्यों को जनमानस तक पहुंचाने का संकल्प लिया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता महाविद्यालय की प्राचार्य प्रो0 आभा शर्मा ने की।
नोडल अधिकारी नमामि गंगे डॉ0 रितुराज पंत ने शिविर का उद्देश्य बताते हुए कहा कि राज्य स्वच्छ गंगा मिशन के निर्देशन में आयोजित शिविर में भारतीय ज्ञान एवं परंपराओं की व्यवहारिक प्रासंगिकता, योग और नदियों के संरक्षण को केंद्र में रखा जाना है।
वेदाचार्य के.बी. पाठक ने हवन कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया और उसकी वैज्ञानिक एवं आध्यात्मिक महत्ता को बताया। उन्होंने माथे पर तिलक लगाने को आज्ञा चक्र के जागरण और मानसिक ऊर्जा के संतुलन से जोड़ा तथा शंख और घंटी की ध्वनि को वातावरण की शुद्धि, एकाग्रता में वृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न करने वाला बताया। उन्होंने बताया कि घरों में प्रातः और संध्या काल में घंटी और शंख बजाने से वातावरण शुद्ध रहता है और घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। इसी क्रम में प्राकृतिक चिकित्सक विमल पांडे ने प्राकृतिक चिकित्सा की व्यवहारिक विधियों को सरल भाषा में समझाया। उन्होंने बताया कि सूर्यस्नान, गुनगुना जल, मिट्टी और जल चिकित्सा, मौसमी फल व सब्जियों का सेवन, और व्रत व उपवास जैसी पद्धतियाँ हमारे शरीर की प्राकृतिक रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती हैं। उन्होंने बताया कि दिन की शुरुआत नींबू-गुनगुने पानी से करने, सप्ताह में एक दिन उपवास रखने और नंगे पैर घास पर चलने जैसे छोटे-छोटे अभ्यास भी व्यक्ति को रोगमुक्त बना सकते हैं।
योगाचार्य ज्योति चुफाल ने प्रतिभागियों को दैनिक जीवन में उपयोगी सरल योगासनों का अभ्यास कराया और उनके स्वास्थ्य लाभों पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि ताड़ासन से शरीर में संतुलन और लंबाई बढ़ती है, वज्रासन भोजन के बाद पाचन के लिए अत्यंत उपयोगी है, भुजंगासन मेरुदंड को मजबूत बनाता है, प्राणायाम तनाव कम करता है और मन को स्थिर करता है। शवासन से दिन भर की थकान और मानसिक तनाव दूर होता है। उन्होंने बताया कि यदि व्यक्ति प्रतिदिन 30 मिनट योग और 10 मिनट ध्यान करता है, तो वह शारीरिक और मानसिक दोनों स्तरों पर संतुलित रह सकता है।
इतिहासकार डॉ. सर्वेश भारती ने भारतीय सभ्यता में नदियों की भूमिका पर विस्तार से चर्चा की।उन्होंने कहा कि सिन्धु, सरस्वती, गंगा जैसी नदियाँ केवल जलधाराएँ नहीं रहीं, बल्कि भारतीय सभ्यता की रीढ़ रही हैं। नदियों के किनारे शिक्षा, अध्यात्म और व्यापार का विकास हुआ। उन्होंने बताया कि गंगा को मां का दर्जा इसीलिए मिला क्योंकि वह जीवन देती है, संस्कृति को पोषित करती है। उन्होंने गंगा दशहरा जैसे पर्वों को नदियों की महत्ता से जोड़ते हुए युवाओं को प्रेरित किया कि वे नदी संरक्षण को आस्था और कर्तव्य दोनों रूपों में अपनाएं। उन्होंने व्यवहारिक रूप में अपील की कि लोग नदियों में कचरा न डालें, पूजा सामग्री को वैकल्पिक विधि से विसर्जित करें और स्थानीय जलस्रोतों की सफाई में भागीदारी करें। प्राचार्य प्रो0 आभा शर्मा ने प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के “कम चीनी और कम तेल” जैसे स्वास्थ्य परक संदेश को अपनाने की अपील करते हुए कहा कि भारतीय ज्ञान परंपरा केवल पूजा-पाठ नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला है, जिसे व्यवहार में उतारना ही सच्चा अनुसरण है। उन्होंने आयोजन में भाग लेने वाले सभी अतिथियों, प्रतिभागियों और समिति का आभार प्रकट किया। कार्यक्रम का संचालन मीनाक्षी पंत द्वारा गरिमामय ढंग से किया गया। इस अवसर पर मंदिर समिति के अध्यक्ष उमेश चंद्र पांडे
सचिव विनोद चंद पांडे, कोषाध्यक्ष आशुतोष जोशी, उपसचिव विमल कुमार पांडे, विजय तिवारी, बॉबी लटवाल, अमर, वरुण जोशी, करण तिवारी, राकेश कांडपाल, कंचन पाठक, डॉ. हिमानी, यशोधर नाथ एवं अनेक गणमान्यजन उपस्थित रहे।