आदिगुरु शंकराचर्य का अद्वैत वेदांत आज भी प्रासंगिक : शंकराचार्य नरेंद्रानंद सरस्वती

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लखनऊ। राजेन्द्र तिवारी

आदिगुरु शंकराचार्य ने न सिर्फ वेदों को देश के हर कोने में पहुंचाया बल्कि सनातन धर्म के विरोध में बने धर्मों के मतों को भी उन्होंने शास्त्रार्थ से खारिज किया। आदिगुरु शंकराचार्य ने अद्वैत वेदान्त को आधार प्रदान किया। यही नहीं सनातन धर्म की विविध विचारधाराओं का एकीकरण् आदिगुरु शंकराचार्य ने ही किया। उन्होंने उपनिषदों और वेदांतसूत्रों की जो रचना की वह आज भी प्रासंगिक है। यह बातें वाराणसी में आदिगुरू शंकराचार्य की जयंती पर काशी सुमेरु पीठाधीश्वर जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती ने कही।

लॉकडाउन में नियमों का पालन करते हुए वाराणसी के काशी सुमेरू पीठ में आदिगुरू शंकराचार्य की जयंती मनाई गई। मंगलवार को वाराणसी के डुमरांव बाग कॉलोनी स्थित श्री काशी सुमेरु मठ में विधि-विधान से आदिशंकराचार्य का पूजन किया गया। आदिशंकराचार्य की जयंती पर मौजूद दण्डी सन्यासियों व सनातन धर्मावलंबियों को सम्बोधित करते हुए काशी सुमेरु पीठाधीश्वर जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती महाराज ने कहा कि आदिगुरु शंकराचार्य भगवान ने जो उपदेश दिए वह आत्मा और परमात्मा की एकरूपता पर आधारित हैं। परमात्मा एक ही समय में सगुण और निर्गुण दोनों स्वरूपों में रहता है। स्मार्त संप्रदाय में आदि शंकराचार्य को शिव का अवतार माना जाता है।

आदिगुरु शंकराचार्य ने ईश, केन, कठ, प्रश्न, मुण्डक, मांडूक्य, ऐतरेय, तैत्तिरीय, बृहदारण्यक और छान्दोग्योपनिषद् पर भाष्य लिखा। आदिगुरु शंकराचार्य ने वेदों में लिखे ज्ञान को लेकर पूरे देश में प्रचार प्रसार किया। 32 वर्ष के अपने जीवन काल में उन्होंने चार्वाक, जैन और बौद्ध मतों को शास्त्रार्थों द्वारा खारिज किया। इस दौरान उन्होंने देश के विभिन्न स्थानों पर सात मठों की स्थापना भी की।आदिगुरू शंकराचार्य ने कलियुग के प्रथम चरण में विलुप्त तथा विकृत वैदिक ज्ञानविज्ञान को शुद्ध कर वैदिक वाङ्मय को दार्शनिक, व्यावहारिक, वैज्ञानिक धरातल पर समृद्ध करने का कार्य किया।
उन्होंने बताया कि सतयुग की अपेक्षा त्रेता में, त्रेता की अपेक्षा द्वापर में तथा द्वापर की अपेक्षा कलि में मनुष्यों की प्रज्ञाशक्ति तथा प्राणशक्ति एवं धर्म और आध्यात्म का ह्रास सुनिश्चित है। यही कारण है कि कृतयुग में शिवावतार भगवान दक्षिणामूर्ति ने केवल मौन व्याख्यान से शिष्यों के संशयों का निवारण किय‍ा। त्रेता में ब्रह्मा, विष्णु औऱ शिव अवतार भगवान दत्तात्रेय ने सूत्रात्मक वाक्यों के द्वारा अनुगतों का उद्धार किया। द्वापर में नारायणावतार भगवान कृष्णद्वैपायन वेदव्यास ने वेदों का विभाग कर महाभारत तथा पुराणादि की। ब्रह्मसूत्रों की संरचनाकर एवं शुक लोमहर्षणादि कथाव्यासों को प्रशिक्षितकर धर्म तथा आध्यात्म को उज्जीवित रखा। कलियुग में भगवत्पाद श्रीमद् शंकराचार्य ने भाष्य , प्रकरण तथा स्तोत्रग्रन्थों की संरचना कर , विधर्मियों-पन्थायियों एवं मीमांसकादि से शास्त्रार्थ , परकायप्रवेशकर , नारदकुण्ड से अर्चाविग्रह श्री बदरीनाथ एवं भूगर्भ से अर्चाविग्रह श्रीजगन्नाथ दारुब्रह्म को प्रकटकर तथा प्रस्थापित कर , सुधन्वा सार्वभौम को राजसिंहासन समर्पित कर एवं अहर्निश अथक परिश्रम के द्वारा धर्म और आध्यात्म को उज्जीवित तथा प्रतिष्ठित किया। शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती ने दण्डी सन्यासियों से पूरे देश में भ्रमण कर सनातन धर्म का प्रचार प्रसार करने एवं सनातन धर्मावलंबियों को एक सूत्र में पिरोकर विधर्मियों द्वारा सनातन धर्म, संस्कृति एवम् परम्परा को कमज़ोर करने के लिए चलाये जा रहे अभियानों को विफल करने का आह्वान किया। इस अवसर पर स्वामी दुर्गेशानन्द तीर्थ, स्वामी रामदेव आश्रम, स्वामी महादेव आश्रम, स्वामी राधेश्याम आश्रम, ब्रह्मचारी शिवनन्दन द्विवेदी व श्री विनोद त्रिपाठी सहित अन्य दण्डी सन्यासी व भक्त उपस्थित रहे।

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