स्कॉटलैंड । महिलाओं को जीवन भर का दर्द घरेलू हिंसा दे रहा है। एक रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि घरेलू हिंसा की शिकार महिलाएं, हिंसा से निकलने के लगभग 30 साल बाद या पूरी जिंदगी खराब मानसिक स्वास्थ्य और दिमाग से जुड़ी गंभीर समस्याओं का सामना कर रही हैं। इस संबंध में स्कॉटलैंड के ग्लासगो यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में खुलासा किया कि दुनिया भर में लगभग 30% महिलाएं किसी न किसी रूप में घरेलू हिंसा का सामना करती हैं। हालांकि कई बार शारीरिक हिंसा समाप्त हो जाती है, लेकिन उसका प्रभाव मानसिक स्वास्थ्य पर कई दशकों तक बना रहता है। अवसाद, बेचैनी, पीटीएसडी(पोस्ट-ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर), नींद से जुड़ी परेशानियां और अन्य मानसिक बीमारियां उन महिलाओं में वर्षों बाद भी देखी जा सकती हैं।इसके जरिए यह पता लगाने की कोशिश की गई थी कि घरेलू हिंसा और दर्दनाक दिमागी चोट का मानसिक स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ता है। शोधकर्ताओं ने बताया कि दुनियाभर में लगभग 3 में से एक महिला घरेलू हिंसा का अनुभव करती है और उनके मानसिक स्वास्थ्य पर उसका असर दशकों तक रहता है। आंकड़ों की जांच के बाद पता चला कि जिन महिलाओं के साथ उनके पार्टनर घरेलू हिंसा या शारीरिक दुर्व्यवहार करते हैं, उनकी दिमागी सेहत पर खतरा ज्यादा होता है। साथ ही वे आजीवन अवसाद, तनाव, चिंता, नींद से जुड़ी बीमारियों का शिकार रहती हैं। विश्लेषण में यह भी पाया गया कि हिंसा के संपर्क में आने के दशकों बाद भी इन महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य विकारों का जोखिम कम नहीं होता है। इस अध्ययन को पूरा करने के लिए 40 से 59 साल की उम्र वाली महिला प्रतिभागियों के डाटा का विश्लेषण किया गया था। इनमें से 14 प्रतिशत महिलाओं ने बताया कि उन्होंने अपने जीवन में घरेलू हिंसा और शारीरिक दुर्व्यवहार को सहन किया है। इस अध्ययन को ड्रेक फाउंडेशन, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ, मेडिकल रिसर्च काउंसिल, एनएचएस रिसर्च स्कॉटलैंड, अल्जाइमर सोसाइटी और अल्जाइमर एसोसिएशन द्वारा आर्थिक सहायता मिली थी।गौरतलब है कि राष्ट्रीय महिला आयोग के अनुसार, भारत में पिछले साल (2024) में घरेलू हिंसा एक प्रमुख चिंता का विषय बनी रही। कुल 25,743 शिकायतों में से 6,237 शिकायतें घरेलू हिंसा से संबंधित थीं, जो कुल शिकायतों का लगभग एक-चौथाई है। यह दर्शाता है कि घर की चारदीवारी के भीतर महिलाओं के खिलाफ हिंसा एक गंभीर समस्या बनी हुई है। ‘सम्मान के साथ जीने के अधिकार’ से जुड़ी शिकायतें सबसे ज्यादा रहीं। यह अधिकार महिलाओं के लिए बुनियादी है और इसकी मांग सबसे ज़्यादा होना चिंताजनक है। दहेज उत्पीड़न और दहेज हत्याओं की शिकायतें भी बड़ी संख्या में दर्ज की गईं, जो दर्शाता है कि दहेज प्रथा अभी भी महिलाओं के लिए एक बड़ा खतरा है। शोधकर्ताओं ने कहा, ‘घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं में से अधिकांश ने सिर पर बार-बार चोट लगने की सूचना दी। पति द्वारा की जाने वाली हिंसा के मामले दुनिया भर में सामने आते रहते हैं, और कुछ मामले तो खुलकर बाहर आते भी नहीं, इसलिए इस मामले पर अत्यधिक शोध की जरूरत है। प्रोफेसर विली स्टुअर्ट ने कहा, ‘नीति निर्माताओं और स्वास्थ्य विशेषज्ञों के बीच इस मुद्दे के बारे में जागरुकता बढ़ाने की सख्त जरूरत है।’
