श्री हरि का स्वरूप है पुराण : शंकराचार्य

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प्रयागराज। अपर्णा पांडेय

पुराण साक्षात श्री हरि का रूप है। यह बात प्रयागराज में श्री काशी सुमेरु पीठाधीश्वर जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती ने प्रवचन के दौरान कही। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार संपूर्ण जगत को आलोकित करने के लिए भगवान सूर्यरूप में प्रकट होकर बाहरी अंधकार को नष्ट करते हैं, उसी प्रकार हमारे हृदय अंधकार औरभीतरी अंधकार को दूर करने के लिए श्रीहरि ही पुराण-विग्रह धारण करते हैं।
प्रयागराज अर्ध कुम्भ के अवसर पर बुधवार को सेक्टर 5 पुरानी जीटी मार्ग स्थित महोमहापाध्याय देवेन्द्र मिश्र के शिविर में आयोजित श्रीमद्भागवत महाप्राण कथा में श्री काशी सुमेरु पीठाधीश्वर जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती ने श्रद्धालुओं को धर्म और अंधकार से प्रकाश की ओर जाने का मार्ग बताया।
उन्होने कहा कि
“यथा सूर्यवपुर्भूत्वा प्रकाशीय चरेद्धरि:, सर्वेषां जगतामेव हरिरालोकहेतवे। तथैवान्त:प्रकाशाय पुराणावयवो हरि:, विचरेदिह भूतेषु पुराणं पावनम् परम् ।
अर्थात धर्म का फल है संसार के बंधनों से मुक्ति और भगवान् की प्राप्ति। उससे यदि कुछ सांसारिक सम्पत्ति उपार्जन कर ली तो यह उसकी कोई सफलता नहीं है। इसी प्रकार धन का फल है-एकमात्र धर्म का अनुष्ठान, वह न करके यदि कुछ भोग की सामग्री एकत्र कर ली, तो यह कोई लाभ की बात नहीं है।
उन्होंने कहा कि भोग की सामग्रियों का भी यह लाभ नहीं है कि उनसे इंद्रियों को तृप्त किया जाए, जितने भोगों से जीवन निर्वाह हो जाए, उतने ही भोग हमारे लिए पर्याप्त हैं। जीवन-निर्वाह का जीवित रहने का फल यह नहीं है कि अनेक प्रकार के कर्मों के पचड़े में पड़ कर इसलोक या परलोक का सांसारिक सुख प्राप्त किया जाय।
उन्होंने कहा कि यदि भगवान को प्रसन्न करने का मन में संकल्प हो तो सभी मनुष्यों को निरन्तर श्रीकृष्ण के अंगभूत पुराणों का श्रवण करना चाहिए। उन्होंने श्रद्धालुओं से कहा कि वेदों की भांति पुराण भी हमारे यहां अनादि माने गए हैं। उनका कोई रचयिता नहीं है। सृष्टि कर्ता ब्रह्माजी भी उनका स्मरण ही करते हैं। पद्म पुराण में लिखा है-पुराणं सर्वशास्त्राणां प्रथमं ब्रह्मणा स्मृतम्। जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती जी महाराज ने आयोजकों को उनके यज्ञ की सफलता के साथ-साथ उनके मनोरथ के पूर्ण होने का आशीर्वाद भी प्रदान किया।

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