राज्यसभा के 48 घंटे में 44 घंटे हंगामे की भेंट चढ़े

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नई दिल्ली। नीलू सिंह
राज्यसभा का 31 जनवरी को शुरू हुआ सत्र बुधवार को अनिश्चित काल के लिए स्थगित हो गया। लगभग पूरा सत्र विभिन्न दलों के हंगामे की भेंट चढ़ गया। पूरे सत्र में महज तीन घंटे से कुछ अधिक समय ही काम हो पाया। सत्र के अंतिम दिन अंतरिम बजट और राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव को बिना चर्चा के मंजूरी दे दी गई।
वंदे मातरम की धुन बजाए जाने के बाद सभापति ने बैठक को अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दिया। सत्र को अनिश्चित काल के लिए स्थगित करने से पहले सभापति एम वेंकैया नायडू ने अपने पारंपरिक संबोधन में सत्र को गंवा दिया गया अवसर बताया। उन्होंने उम्मीद जताई कि अगले सत्र में विभिन्न दलों के सदस्य सकारात्मक योगदान देंगे। नायडू ने कहा कि वर्तमान सत्र में होने वाली कुल दस बैठकों में कामकाज के 48 घंटों में से 44 घंटे हंगामे की भेंट चढ़ गए। इस दौरान कुल पांच विधेयक पारित किए गए या लौटाए गए और सदन के कामकाज का प्रतिशत मात्र 4.9 रहा।
सत्र के दौरान छह विधेयकों को पेश किया गया। इस दौरान हंगामे के कारण विशेष उल्लेख के जरिये कोई भी लोक महत्व का मुद्दा नहीं उठाया जा सका।
31 जनवरी को संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में राष्ट्रपति के अभिभाषण के साथ वर्तमान सत्र प्रारंभ हुआ था। एक फरवरी को लोकसभा में अंतरिम बजट पेश किया गया और उसी दिन इसकी प्रति उच्च सदन में रखी गई।
सत्र के दौरान राफेल विमान सौदे, 13 प्वॉइंट रोस्टर, नागरिकता विधेयक, सपा नेता अखिलेश यादव को प्रयागराज में आयोजित एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने से रोकने, कोलकाता में सीबीआई की कार्रवाई सहित विभिन्न मुद्दों पर विपक्षी दलों के सदस्यों के हंगामे के कारण सदन की कार्यवाही लगातार बाधित रही। हंगामे के कारण सदन में एक भी दिन प्रश्नकाल एवं शून्यकाल सुचारू रूप से नहीं चल सके।
सत्र के दौरान अंतरिम बजट और वित्त विधेयक के अलावा संविधान (अनुसूचित जनजातियां) आदेश (तीसरा संशोधन) विधेयक 2019 और वैयक्तिक कानून (संशोधन) 2019 पारित कराए जा सके।
राज्यसभा में बुधवार को विभिन्न दलों की मंजूरी के बात बिना चर्चा के अंतरिम बजट और वित्त विधेयक 2019-20 को लोकसभा को लौटा दिया गया। लोकसभा इसे पहले ही पारित कर चुकी है। लगातार हंगामा होने की वजह से अंतरिम बजट और वित्त विधेयक पर उच्च सदन में चर्चा नहीं हो पाई।
कुष्ठ रोग के आधार पर अब तलाक नहीं लिया जा सकेगा। संसद ने इस रोग को तलाक का आधार नहीं मानने के प्रावधान वाले एक विधेयक को मंजूरी दे दी। बजट सत्र के अंतिम दिन राज्यसभा में इस विधेयक पर सहमति बनने के बाद इसे बिना चर्चा के पारित कर दिया गया।
राज्यसभा में विभिन्न मुद्दों के पर हंगामे के कारण पिछले कई दिनों से चल रहे व्यवधान के बीच बुधवार को उच्च सदन में उस समय बेहद खुशनुमा नजारा देखने को मिला जब सभापति एम वेंकैया नायडू ने विभिन्न विधेयकों पर तमाम संशोधन लाने वाले कांग्रेस के सदस्य टी सुब्बीरामी रेड्डी को सबसे अधिक संशोधन लाने वाले सांसद का पुरस्कार देने का सुझाव मजाक में दिया। उनके इस सुझाव से पूरे सदन में हंसी की लहर दौड़ गयी।
वर्तमान संसद के अंतिम सत्र के दौरान विवादित नागरिकता संशोधन विधेयक और तीन तलाक संबंधी विधेयक राज्यसभा में पारित नहीं किए जा सकने के कारण इनका निष्प्रभावी होना तय है।
दोनों विधेयक लोकसभा से पारित हो चुके हैं लेकिन उच्च सदन में बजट सत्र के दौरान कार्यवाही लगातार बाधित रहने के कारण इन्हें आखिरी दिन तक राज्यसभा में पारित नहीं किया जा सका। तीन जून को इस लोकसभा का कार्यकाल समाप्त होने पर ये दोनों विधेयक निष्प्रभावी हो जाएंगे।
संसदीय नियमों के अनुसार लोकसभा से पारित विधेयक यदि राज्यसभा में पारित नहीं हो पाते हैं तो वह लोकसभा के भंग होने पर निष्प्रभावी हो जाते हैं। उच्च सदन में सत्तापक्ष का बहुमत नहीं होने के कारण दोनों विधेयक लंबित हैं।
नागरिकता विधेयक में बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से भारत आए वहां के अल्पसंख्यक (हिंदू, जैन, इसाई, सिख, बौद्ध और पारसी) शरणार्थियों को सात साल तक भारत में रहने के बाद भारत की नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान किया है। मौजूदा प्रावधानों के तहत यह समय सीमा 12 साल है। इस विधेयक का असम सहित अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में विरोध किया जा रहा है।
इसी प्रकार मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) अध्यादेश के तहत तीन तलाक को अपराध घोषित करने के प्रावधान का विपक्षी दल विरोध कर रहे हैं। तीन तलाक को अवैध घोषित कर इसे प्रतिबंधित करने वाले प्रावधानों को सरकार अध्यादेश के जरिए दो बार लागू कर चुकी है।

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