बिहार, बंगाल में फिर घट गई हमारी लाडो

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अर्पणा पांडेय
बेटी बचाओ अभियान खूब चला। अखबार के पन्नों से लेकर सोशल मीडिया के पोस्ट तक। रैलियों से लेकर बच्चों के अभियान तक। सरकार तक ने बजट का मुंह खोल दिया पर, कई ऐसे राज्य हैं जहां इसका कोई असर नहीं हुआ। हाल यह है कि बिहार, तेलंगाना, महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात में बेटों की तुलना में बेटियों की संख्या में गिरावट दर्ज की गई है। हालांकि राहत वाली बात यह है कि हरियाणा, पंजाब और मध्यप्रदेश जैसे राज्यों में बेटियों की संख्या बढ़ी है।

नीति आयोग की जारी हेल्थ रैंकिंग में बेटियों की संख्या को लेकर चिंताजनक रिपोर्ट आई है। नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने मंगलवार को ‘हेल्दी स्टेट प्रोग्रेसिव इंडिया’ नामक रिपोर्ट जारी की। यह दूसरा मौका है जब आयोग ने स्वास्थ्य सूचकांक के आधार पर राज्यों की रैंकिंग जारी की है। रिपोर्ट को केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, विश्व बैंक और नीति आयोग ने मिलकर तैयार किया है।
आंकड़ों के अनुसार देश के 21 बड़े राज्यों में से 12 में लड़कों की तुलना में लड़कियों की संख्या कम हुई है। हालांकि कई राज्यों में लड़कियों के अनुपात में सुधार भी देखा जा रहा है।
बिहार, गुजरात, हिमाचल, राजस्थान और महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्यों में लड़कियों की संख्या लड़कों की तुलना में कम हुई है वहीं हरियाणा, पंजाब और मध्यप्रदेश में वृद्धि दर्ज की गई है।
तेलंगना में 2014-16 में लड़कियों की संख्या प्रति एक हजार लड़कों पर 935 थी जो इस बार 17 घटकर 918 हो गई है। वहीं पश्चिम बंगाल में यह आंकड़ा प्रति एक हजार लड़कों पर 965 से घटकर 951 हो गया है। बिहार की बात करें तो वहां यह आंकड़ा प्रति एक हजार लड़कों पर 924 था जो आठ घटकर अब 916 हो गया है। इसके अलावा केरल, गुजरात, आंध्रप्रदेश, असम, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, महराष्ट्र, ओडिशा में भी लड़कियों की संख्या में कमी दर्ज की गई है। वहीं झारखंड में 2014-16 में लड़कियों की संख्या प्रति एक हजार लड़कों पर 902 थी जो इस बार 16 बढ़कर 918 हो गई है। वहीं मध्यप्रदेश में यह आंकड़ा प्रति एक हजार लड़कों पर 919 से बढ़कर 922 हो गया है।
बता दें कि रिपोर्ट में राज्यों को तीन हिस्सों में बांटा गया है, बड़े राज्य, छोटे राज्य और केंद्र शासित प्रदेश। स्वास्थ्य क्षेत्र में हुए काम के आधार पर राज्यों को स्कोर दिया गया है। इस रिपोर्ट में साल 2013-15 को आधार मानकर 2014-16 से तुलना की गई है।

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