मुखर नेता फर्नांडिस खामोशी से चले गए

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नई दिल्ली। नीलू सिंह
दिग्‍गज समाजवादी नेता और पूर्व रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस का लंबी बीमारी के बाद मंगलवार सुबह निधन हो गया। वह 88 वर्ष के थे। 1974 की रेल हड़ताल के बाद वह कद्दावर नेता के तौर पर उभरे जॉर्ज फर्नांडिस ने आज दिल्ली में आखिरी सांस ली। उन्होंने बेबाकी के साथ इमर्जेंसी लगाए जाने का विरोध किया था। रक्षा मंत्री, रेल मंत्री जैसे महत्वपूर्ण पदों को संभालने वाले जॉर्ज का जीवन और राजनीतिक करियर विद्रोह, बगावत, विवाद और सफलता का बेमिसाल उदाहरण है।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उनके निधन पर शोक व्यक्त किया है। शोक प्रकट करते समय नीतीश कुमार भावुक हो गए। उन्होंने पूर्व केंद्रीय मंत्री के निधन पर दो दिनों के राजकीय शोक का ऐलान किया है।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा, ‘नई पार्टी बनी और उनके नेतृत्व और मार्गदर्शन में जो कुछ भी सीखने का अवसर मिला और आज जो कुछ भी लोगों की सेवा के लिए करने की कोशिश करते हैं। इसमें उनका मार्गदर्शन हम सभी लोगों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। यूं तो हर किसी को जाना निश्चित है और उनका स्वास्थ्य जिस ढंग से था, वह तो उनके लिए एक तरह से मुक्ति है लेकिन हम सबके लिए यह एक दुखद स्थिति है। हम सब लोगों का यही संकल्प होगा कि जो उनका मार्गदर्शन था और जो हक के लोगों की लड़ाई वह लड़े, इन चीजों को कभी नहीं भूलेंगे।’ बिहार के मुखिया नीतीश कुमार ने फर्नांडिस के निधन को व्यक्तिगत क्षति बताते हुए कहा कि उनके निधन से उन्होंने अपना अभिभावक खो दिया है। आपातकाल के दौरान गिरफ्तारी से बचने के लिए जार्ज फर्नांडिस को पगड़ी पहन और दाढ़ी रखकर सिख का भेष धारण किया था जबकि गिरफ्तारी के बाद तिहाड़ जेल में कैदियों को गीता के श्लोक सुनाते थे। फर्नांडिस 8 से अधिक भाषाओं को जानते थे और उन्हें हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत और कन्नड़ जैसी भाषाओं के साहित्य का अच्छा ज्ञान था। फर्नांडिस के साथ जेल में रहे विजय नारायण ने बताया था, हम न सिर्फ छिप रहे थे, बल्कि अपना काम भी कर रहे थे। गिरफ्तारी से बचने के लिए जार्ज ने पगड़ी और दाढ़ी के साथ एक सिख का भेष धारण किया था। वह मशहूर लेखक के नाम पर खुद को खुशवंत सिंह कहा करते थे।
फर्नांडिस ने 1977 का लोकसभा चुनाव जेल में रहते हुए ही मुजफ्फरपुर लोकसभा सीट से रेकॉर्ड मतों से जीता था। जनता पार्टी की सरकार में उद्योग मंत्री भी बने। हालांकि जल्द ही जनता पार्टी टूटी और फर्नांडिस ने अपनी पार्टी समता पार्टी बनाई। इसी दौर में वह वर्तमान बीजेपी के नेताओं के अधिक करीब आए। फर्नांडिस ने अपने राजनीतिक जीवन में उद्योग, रेल और रक्षा मंत्रालय संभाला। वाजपेयी सरकार में परमाणु परीक्षण के वक्त वह रक्षा मंत्री थे। बतौर रेल मंत्री उन्हें कोंकण रेलवे को शुरू करने का भी श्रेय दिया जाता है।
जॉर्ज फर्नांडिस की शुरुआती छवि एक मुखर विद्रोही नेता की थी। मुंबई में शुरुआती राजनीतिक जीवन के बारे में उन्होंने कई इंटरव्यू में बताया था कि वह कभी-कभी चौपाटी पर सोते थे और और फुटपॉथ से ही खाना खाते थे। धार्मिक शिक्षा लेने के लिए उन्हें 16 साल की उम्र में चर्च भेजा गया, लेकिन युवा जॉर्ज का मन वहां रमा नहीं। वह बॉम्बे (अब मुंबई) चले आए और सोशलिस्ट आंदोलनों से जुड़ गए। 50 के दशक में वह टैक्सी चालकों के आंदोलनों के बड़े तेज-तर्रार नेता बनकर उभरे।
शुरुआती राजनीतिक जीवन में जॉर्ज तीखे बागी तेवरों वाले मजदूरों कामगारों के नायक के तौर पर उभरे। उन्हीं के नेतृत्व में 8 मई 1974 को देशव्यापी रेल हड़ताल का ऐलान किया गया था। इस आंदोलन को कुचलने के लिए तत्कालीन इंदिरा सरकार ने बेहद सख्ती दिखाई, लेकिन जॉर्ज को देश में बड़ी पहचान जरूर मिली।
जॉर्ड फर्नांडिस का बतौर रक्षा मंत्री कार्यकाल बेहद विवादित रहा। ताबूत घोटाले और तहलका विवाद में उन्हें अदालत ने बरी कर दिया, लेकिन इस मामले ने उनकी छवि धूमिल की। मिग-29 विमानों की खरीद में भ्रष्टाचार के आरोप भी उनके कार्यकाल में लगे।
जॉर्ज फर्नांडिस ने बोफोर्स मामले पर एक बार कहा था कि प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने उनसे बोफोर्स फाइलें नहीं छूने के लिए कहा है। हालांकि, बाद में उन्होंने कहा कि वाजपेयी ने महज चुटकी ली थी और मीडिया ने उनके बयान को काफी गलत ढंग से पेश किया। आपातकाल के मुखर विद्रोहियों में फर्नांडिस का नाम हमेशा पहली पंक्ति में रहेगा। आपातकाल में राज्य आदेश की मुखालफत के लिए उन्होंने डायनामाइट विस्फोट की योजना बनाई। कूमी कूपर की किताब के अनुसार, जॉर्ज की कोशिश राज्य अवज्ञा के जोरदार तरीके जनता तक पहुंचाने की थी। उन्हें बाद में 25 अन्य साथियों के साथ गिरफ्तार भी किया गया।
जॉर्ज फर्नांडिस की मुलाकात लैला कबीर से फ्लाइट में हुई थी और जॉर्ज उनकी बौद्धिक क्षमता से काफी प्रभावित हुए थे। लैला पूर्व केंद्रीय मंत्री हुमायूं कबीर की बेटी थीं। दोनों ने बाद में शादी कर ली और उनके दो बेटे भी हैं। हालांकि, बाद में फर्नांडिस के संबंध जया जेटली से भी हुए, जिस पर काफी विवाद भी था। जया के साथ रहते हुए पारिवारिक संपत्ति विवाद भी मीडिया में छाया रहा। नई दिल्ली स्थित अपने सरकारी आवास पर उन्होंने सुबह 7 बजे आखिरी सांस ली। फर्नांडिस अल्जाइमर बीमारी से पीड़ित थे। गौरतलब है कि तीन जून 1930 को कर्नाटक में जन्मे जॉर्ज फर्नांडिस ने अपने सियासी सफर की शुरुआत ट्रेड यूनियन नेता के रूप में की और बाद में वह देश के रक्षा मंत्री बने।

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