तेल अवीव। इजरायल की ओर से ईरान के परमाणु और सैन्य ठिकानों पर किया गया हमला अप्रत्याशित नहीं है। इस हमले के बारे में ईरान को 2-3 दिन पहले ही चेतावनी मिल चुकी थी लेकिन इसके बावजूद ईरान अपने हवाई रक्षा प्रणाली के जरिए हमले रोकने में नाकाम रहा। इजरायल ने इससे पहले भी ईरान के सैन्य ठिकानों पर हमले कर नुकसान पहुंचाया है। ईरान के पास हवाई हमलों को रोकने के लिए कई वायु रक्षा प्रणाली है। इनमें प्रमुख रूप से एस 300, बवर, शाहीन इत्यादि हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि मध्य पूर्व में ईरान ऐसे अनेक समूहों का प्रमुख समर्थक माना जाता है, जिन्हें अक्सर ‘प्रॉक्सी समूह’ कहा जाता है। इन समूहों – गाजा में हमास, लेबनान में हिजबुल्लाह, यमन में हौथी और इराक और सीरिया में छोटे मिलिशिया शामिल हैं। इजरायल इन समूहों को अपना दुश्मन मानता है। लेकिन पिछले कुछ महीनों में इजरायल ने इन समूहों की कमर तोड़ रखी है। 7 अक्तूबर, 2023 को हमास द्वारा इजरायल पर हमला किए जाने के बाद से यह धुरी कमजोर हो गई है, जिसके कारण गाजा में युद्ध और पूरे क्षेत्र में व्यापक लड़ाई शुरू हो गई है। इजरायल ने ईरान के सबसे मजबूत प्रॉक्सी, हमास और हिज्बुल्लाह को लगभग खत्म कर दिया है। हिज्बुल्लाह के कमजोर होने से पिछले दिसंबर में सीरिया में ईरान के लंबे समय से मजबूत सहयोगी राष्ट्रपति बशर असद का पतन हुआ।
ईरान और इजरायल में युद्ध बढ़ने का असर दिखने लगा है। ईरान पर इजरायली हमले की खबर आते ही कच्चे तेल के दाम में उबाल आ गया। वैश्विक तेल मानक ब्रेंट क्रूड 7.44 प्रतिशत उछलकर 74.52 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गया। यह इसका इस साल का उच्चतम स्तर है। वहीं, जेपी मॉर्गन ने अपनी नई रिपोर्ट में चेताया है कि अगर हालात बदतर हुए तो तेल की कीमतें 120 डॉलर प्रति बैरल तक जा सकती हैं। इससे कई देशों में महंगाई बढ़ सकती है। महंगे कच्चे तेल का असर भारत पर भी दिख सकता है। भारत अपनी 80 प्रतिशत से अधिक कच्चे तेल की ज़रूरतों के लिए आयात पर निर्भर है। विशेषज्ञों का कहना है कि आपूर्ति में कोई भी व्यवधान कई प्रमुख भारतीय क्षेत्रों को प्रभावित कर सकता है। अगर तनाव तीन से छह महीने से ज़्यादा समय तक बना रहता है, तो इन क्षेत्रों में मांग में कमी या मार्जिन पर दबाव देखने को मिल सकता है।”
