सवर्णों को आरक्षण देने का विधेयक लोकसभा से पास

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नई दिल्ली। नीलू सिंह

गरीब सवर्णों को आर्थिक आधार पर शिक्षा और नौकरियों में 10 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए मंगलवार को लोकसभा में पेश 124वां संविधान संशोधन विधेयक पास हो गया। इसके पक्ष में 323 और विरोध में 3 वोट पड़े। केंद्रीय मंत्री थावरचंद गहलोत ने 124वां संविधान संशोधन विधेयक लोकसभा में पेश किया था। इस पर करीब 5 घंटे चर्चा चली। कांग्रेस ने बिल का विरोध नहीं किया, लेकिन पार्टी ने मांग की थी कि बिल पहले संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के पास भेजा जाए। इस पर वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा- आप इस बिल का समर्थन कर ही रहे हैं तो आधे मन से नहीं, पूरे दिल से कीजिए। जब यह बिल गरीब सवर्णों के पक्ष में है तो कम्युनिस्टों को भी इसका विरोध नहीं करना चाहिए।
केंद्रीय मंत्री थावर चंद गहलोत ने बिल पेश करते हुए कहा कि जो भी जाति एससी, एसटी और ओबीसी में नहीं आती है, उन्हें सामान्य वर्ग आरक्षण का लाभ मिलेगा। साथ ही हर धर्म के गरीबों को सामान्य आरक्षण वर्ग में लाभ मिलेगा। गहलोत ने कहा कि एससी-एसटी और ओबीसी के 49.5 फीसदी आरक्षण में कोई छेड़छाड़ नहीं की जाएगी। चर्चा के दौरान विपक्ष ने सवाल उठाया था कि सदन से पारित होने के बाद भी यह कानून सुप्रीम कोर्ट में टिक नहीं जाएगा। इसका जवाब देते हुए जेटली ने कहा कि सामान्य वर्ग के गरीबों के लिए आरक्षण के कई बार प्रयास हुए लेकिन उनके प्रयास इस रूप में नहीं थे कि कोर्ट में ठहर पाते। राज्यों ने भी आरक्षण देने की कोशिश की लेकिन वह सुप्रीम कोर्ट में जाकर सिर्फ इसलिए रद्द हो गया क्योंकि इसके लिए सही रास्ता नहीं अपनाया गया। उन्होंने कहा कि सामान्य वर्ग को 10 फीसदी आरक्षण से सुप्रीम कोर्ट द्वारा आरक्षण की 50 फीसदी सीमा का उल्लंघन नहीं होता। जेटली ने कहा कि शिकायत करके विधेयक के समर्थन की जरूरत नहीं है अगर समर्थन करना ही हो तो खुले दिल से इस बिल का समर्थन करें। जेटली ने कहा कि आज कांग्रेस और उसके साथियों की परीक्षा है। उन्होंने कांग्रेस की आपत्तियों को खारिज करते हुए कहा कि विपक्षी दलों के घोषणा पत्र में कई बार आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को आरक्षण की बात कही गई है लेकिन उन्होंने नहीं किया। जिन राज्यों ने करने की कोशिश की उन्होंने या तो नोटिफिकेशन निकाला या सामान्य कानून बनाया लेकिन उसका अधिकार का स्रोत क्या था। संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 स्रोत थे लेकिन उसके तहत सामाजिक-शैक्षणिक पिछड़ों को ही आरक्षण दे सकते हैं। जबकि उस समय जाति इस पिछड़ेपन का पैमाना मानी गई। वित्तमंत्री ने कहा कि नरसिंहराव सरकार ने सामान्य वर्ग के लिए 10 फीसदी आरक्षण का नोटिफिकेशन निकाला लेकिन उसका कोई प्रावधान संविधान में था ही नहीं। इसलिए न्यायपालिका ने उसे नहीं स्वीकारा। जेटली ने समझाया कि सुप्रीम कोर्ट ने 50 फीसदी की जो सीमा लगाई है वो सीमा केवल जाति आधारित आरक्षण के लिए लगाई गई है। इसके लिए तर्क ये था कि सामान्य वर्ग के लिए कम से कम 50 फीसदी तो जगह तो छोड़ी जाए वरना एक वर्ग को उबारने के लिए दूसरे वर्ग के साथ भेदभाव हो जाता। इस लिहाज से मौजूदा विधेयक सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के पीछे की भावना के खिलाफ नहीं है। बहस के दौरान वित्तमंत्री ने कांग्रेस और वाम दलों पर जमकर हमला बोला। विधेयक के मुताबिक सरकारी नौकरियों के साथ निजी उच्च शिक्षण संस्थानों में भी गरीबों के लिए आरक्षण की व्यवस्था लागू होगी, चाहे वह सरकारी सहायता प्राप्त हो या न हो। हालाँकि, संविधान के अनुच्छेद 3० के तहत स्थापित अल्पसंख्यकों के शिक्षण संस्थानों में यह आरक्षण लागू नहीं होगा। साथ ही नौकरियों में सिर्फ नियुक्ति में ही आरक्षण होगा।
विधेयक पर कांग्रेस, सपा, बसपा समेत कई दलों ने समर्थन की बात कही, हालांकि उन्होंने कई सवाल भी उठाए हैं। बसपा अध्यक्ष मायावती ने सरकार के फैसले का स्वागत करते हुए इसे देर से उठाया गया कदम किंतु एक चुनावी स्टंट बताया है। उन्होंने कहा कि यह बसपा की वर्षों से लंबित मांग थी जिसे आधे-अधूरे मन और अपरिपक्व तरीके से स्वीकार किया जा रहा है। अगर सरकार यह फैसला पहले करती तो बेहतर होता। शिवसेना सांसद ने आनंदराव अडसुल कहा कि गरीब लोगों को आरक्षण से काफी मदद मिलती है। एससी एसटी और ओबीसी के अलावा अन्य वर्गों के लोग भी सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक तौर पर पिछड़े हुए हैं। उन्हें आरक्षण देने का फैसला सराहनीय है। उन्होंने कहा कि इसमें साढ़े चार साल क्यों लगे यह सवाल मेरे मन भी आता है। लेकिन कभी-कभी देरी से आए फैसले में दुरुस्त साबित होते हैं।

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