@ अब तक 56 : एक गांव जहां की पहचान बनीं बेटियां

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पटना। टीएलआई
दहलीज पार कर जब बेटियों ने उड़ानी भरी तो दुनिया ने न सिर्फ उसके बल्कि उसके गांव को सैल्यूट किया। यह दास्तां बिहार के उस गांव की हैं जहां की बेटियां सिर्फ राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान बना रही हैं। इन बेटियों की संख्या एक दो नहीं बल्कि पूरे 56 हैं। इन बेटियों ने उन लोगों की हंसी को मुंहतोड़ जवाब दिया जो बेटियों की प्रतिभाओं पर सवाल उठा रहे थे। सबसे खास बात यह है कि इन बेटियों ने यह उपलब्धि सिर्फ तीन वर्षों में हासिल की है। किसी ने वॉलीबॉल में दबदबा कायम किया तो किसी ने एथलेटिक्स में। कुछ ने हैंडबॉल में अपनी पहचान बनाई तो कुछ ने कबड्डी में दम दिखाया। राष्ट्रीय खेल दिवस पर इन बेटियों को पूरे देश ने सम्मान दिया है।

सहरसा जिले का सत्तरकटैया गांव। जहां की 56 बेटियां अपने गांव का नाम राष्ट्रीय स्तरीय खेलों में दर्ज कर रही हैं। सत्तरकटैया गांव की 15 बेटियों ने राष्ट्रीय वॉलीबॉल में दबदबा कायम किया। तो वहीं एथलेटिक्स में गांव की 24 बेटियां राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बना चुकी हैं। वही हैंडबॉल में 9 बेटियों ने तो कबड्डी में 8 बेटियों ने अपना दम दिखाया है। इन बेटियों के लिए यह सफर इतना आसान नहीं था, जितने आसानी से आज बयां कर रहे हैं। जब ये खेलती थी तो लोग हंसते थे, तंज कसते थे, कहते थे लड़कियां बिगड़ रही हैं। लेकिन ये बिगड़ नहीं रहती थी, ये नई इबारत लिखने की तैयारी कर रही थी। और जब इबारत लिखी गई तो वही लोग आज तारीफों की पूल बांध रहे हैं। इनके हौसलों को परवाज दे रहे हैं।
एथलेटिक्स में राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने वाली सत्तरकटैया की बेटियां पूजा और प्रीतम को लोग गांव की उड़नपरी कहते हैं। पूजा और प्रीतम ने मथुरा में राष्ट्रीय एथलेटिक्स प्रतियोगिता 2019 में दो सौ मीटर में स्वर्ण पदक जीता था। इसके अलावा इसी गांव की कई अन्य लड़कियों ने राष्ट्रीय एथलेटिक्स में सिल्वर और कांस्य पदक जीता है। गांव की प्रतिभा सिर्फ एथलेटिक्स तक ही सीमित नहीं है। राष्ट्रीय वॉलीबॉल प्रतियोगिता में मध्य विद्यालय सत्तरकटैया की छात्राओं ने स्वर्ण पदक हासिल किया है। स्वर्ण पदक विजेता टीम में रही गांव की बेटी प्रीति बताती है कि आज के दौर में भी गांव में बेटियों के लिए खेल में आगे बढ़ना आसान नहीं है। नाते रिश्तेदार, आस-पास के लोग तरह-तरह की बातें करते थे। कई बार तो परिवार वाले भी खेलने से मना करते थे, लेकिन हम लोगों ने हार नहीं मानी। जब राष्ट्रीय स्तर पर चयन हुआ तो वही लोग तारीफ करते नजर आने लगे। कमलेश्वर और ललिया की इकलौती बेटी अर्चना बताती है कि जब खेल यूनिफार्म पहनती तो मां-पिताजी से गांव के लोग बोलते थे, मैं बिगड़ रही हूं। लेकिन जब बिहार की टीम में शामिल होकर राष्ट्रीय स्तर पर पहुंची तो सब सम्मान कर रहे हैं।

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